कश्मीर घाटी की चर्चा जब होती है, तो अधिकांश लोगों का ध्यान आतंकवाद, सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों और राजनीतिक अस्थिरता की ओर जाता है। लेकिन इस छाया में एक ऐसा समुदाय वर्षों से देशभक्ति, साहस और बलिदान की मिसाल कायम करता रहा है, जिसकी कहानी अक्सर मुख्यधारा के विमर्श से ओझल रहती है – यह समुदाय है गुर्जर-बकरवाल।, जो अपनी विशिष्ट जीवनशैली, भौगोलिक अवस्थिति और अटूट देशभक्ति के कारण आतंकवाद विरोधी प्रयासों में एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। यह समुदाय न केवल आतंकवाद के शिकार रहा है, बल्कि इसने सक्रिय रूप से सुरक्षा बलों का सहयोग किया है, महत्वपूर्ण सूचनाएं साझा की हैं और कई मौकों पर आतंकवादियों का डटकर मुकाबला भी किया है।
पारंपरिक जीवन और राष्ट्रभक्ति की नींव
गुर्जर और बकरवाल मुख्यतः घुमंतू चरवाहा समुदाय हैं, जो पीढ़ियों से जम्मू-कश्मीर के ऊँचे पहाड़ी इलाकों में निवास करते आए हैं। इनका जीवन कठिन परिस्थितियों में बीतता है – पर्वतों में भेड़-बकरी चराना, मौसम की मार झेलना और हर साल ऊँचाई बदलते हुए प्रवास करना इनकी दिनचर्या का हिस्सा है। उनकी जीवनशैली, जिसमें मौसम के अनुसार चरवाहों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास करना शामिल है, उन्हें दुर्गम इलाकों और आतंकवादियों के संभावित ठिकानों से परिचित कराती है। यह भौगोलिक ज्ञान और उनकी भारतीय सुरक्षा बलों के साथ घनिष्ठ संबंध उन्हें आतंकवाद विरोधी प्रयासों में एक अमूल्य संपत्ति बनाते हैं। हालांकि ये समुदाय शिक्षा और आधुनिकता से वर्षों तक दूर रहे, लेकिन इनका राष्ट्रप्रेम और भारत के प्रति निष्ठा कभी डगमगाई नहीं।
आतंकवाद का शिकार और प्रतिरोध:
गुज्जर-बकरवाल समुदाय स्वयं आतंकवाद का शिकार रहा है। आतंकवादियों ने अक्सर उन्हें सूचना देने या सुरक्षा बलों का समर्थन करने के कारण निशाना बनाया है। उनके मवेशियों को लूटा गया है, घरों को जला दिया गया है और कई निर्दोष लोगों की जान भी गई है। इसके बावजूद, इस समुदाय ने कभी भी आतंकवादियों के सामने घुटने नहीं टेके। उन्होंने अपनी पारंपरिक बहादुरी और दृढ़ संकल्प का परिचय देते हुए आतंकवाद का पुरजोर विरोध किया है।
कई ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जब गुज्जर-बकरवाल समुदाय के सदस्यों ने आतंकवादियों की गतिविधियों की जानकारी समय पर सुरक्षा बलों तक पहुंचाई, जिससे कई संभावित हमलों को टाला जा सका। उन्होंने आतंकवादियों को शरण देने से इनकार कर दिया और कई मौकों पर उनका सीधा मुकाबला भी किया। उनकी यह निर्भीकता और देशभक्ति उन्हें आतंकवाद विरोधी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण शक्ति बनाती है।
सुरक्षा बलों के साथ अटूट सहयोग:
गुज्जर-बकरवाल समुदाय, 1947 से लेकर उग्रवाद के आगमन तक भारतीय सेवा की सीजफायर लाइन पर स्थित अग्रिम चौकिया पर दशकों तक सेवा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहा है। इस समुदाय ने 1990 के उपरांत आतंकवाद की लड़ाई से लेकर धारा 370 को निरस्त किए जाने तक भारतीय सेवा एवं भारत सरकार के साथ हर परिस्थिति चट्टान की तरह साथ दिया है जिसका समय-समय पर भारतीय सेना द्वारा एवं भारत सरकार के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा सार्वजनिक राजौरी में आयोजित जनसभा में जिक्र किया गया था । भारत सरकार के साथ खुलकर आतंकवाद विरोधी अभियानों में सुरक्षा बलों के साथ अटूट सहयोग किया है। उनके योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं के तहत समझा जा सकता है:
* खुफिया जानकारी का स्रोत: उनकी भौगोलिक जानकारी और स्थानीय संपर्कों के कारण, गुज्जर-बकरवाल समुदाय आतंकवादियों के ठिकाने, उनकी गतिविधियों और उनकी योजनाओं के बारे में महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी प्रदान करता है। दुर्गम इलाकों में उनकी অবাধ आवाजाही उन्हें उन क्षेत्रों तक पहुंचने में सक्षम बनाती है जहां सुरक्षा बलों की सीधी पहुंच मुश्किल होती है। उनकी दी हुई जानकारी कई सफल आतंकवाद विरोधी अभियानों में निर्णायक साबित हुई है।
* मार्गदर्शन और सहायता: पहाड़ी और जंगली इलाकों में आतंकवाद विरोधी अभियानों के दौरान,गुज्जर-बकरवाल समुदाय के सदस्य सुरक्षा बलों के लिए गाइड के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे इलाके की भौगोलिक परिस्थितियों, रास्तों और संभावित खतरों से अच्छी तरह वाकिफ होते हैं, जिससे सुरक्षा बलों को कुशलतापूर्वक और सुरक्षित रूप से अपने लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद मिलती है। उन्होंने कठिन परिस्थितियों में सुरक्षा बलों को भोजन, पानी और आश्रय भी प्रदान किया है।
* संचार माध्यम: दूरदराज के इलाकों में संचार के सीमित साधनों के बीच, गुज्जर-बकरवाल समुदाय अक्सर स्थानीय आबादी और सुरक्षा बलों के बीच एक महत्वपूर्ण संचार कड़ी के रूप में कार्य करता है। वे संदेशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने और आपातकालीन स्थितियों में सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
* मानवीय सहायता: आतंकवाद से प्रभावित होने के बावजूद, गुज्जर-बकरवाल समुदाय ने हमेशा जरूरतमंद लोगों, जिसमें सुरक्षा बलों के जवान भी शामिल हैं, को मानवीय सहायता प्रदान की है। उन्होंने घायल जवानों को प्राथमिक चिकित्सा दी है और उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया है। उनकी यह करुणा और सेवा भावना उन्हें एक संवेदनशील और जिम्मेदार समुदाय के रूप में स्थापित करती है।
* सांस्कृतिक प्रतिरोध: गुज्जर-बकरवाल समुदाय ने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक मूल्यों के माध्यम से भी आतंकवाद का प्रतिरोध किया है। उनकी लोक कथाएं, गीत और नृत्य हमेशा शांति, सद्भाव और देशभक्ति के संदेश देते हैं। उन्होंने अपनी युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति और मूल्यों से जोड़े रखा है, जिससे उन्हें आतंकवाद के कट्टरपंथी विचारों से दूर रहने में मदद मिली है।
ऑपरेशन "सर्प विनाश": बिना वर्दी बिना तनखा - देशभक्ति की अद्वितीय गाथा
2002 में पुंछ जिले के हिल काका हिल इलाके में भारतीय सेना द्वारा एक विशेष अभियान "ऑपरेशन सर्प विनाश" शुरू किया गया जिसमें गुर्जर बकरवाल समुदाय का अहम सहयोग रहा था । हिल काका- यह पुंछ जिले का एक दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र है जो आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बन गया था। इस क्षेत्र में आतंकवादियों की गतिविधियों को समाप्त करने के लिए कई सैन्य अभियान चलाए गए, जिनमें ऑपरेशन सर्प विनाश भी शामिल था। इस ऑपरेशन का उद्देश्य था पुंछ राजौरी के सुरन कोट इलाके से उग्रवादियों का सफाया करना, जो लंबे समय से से इन पर्वतीय क्षेत्रों में छिपकर आतंकी गतिविधियाँ संचालित कर रहे थे। यह क्षेत्र दुर्गम था और बाहरी बलों के लिए इसे खोजना कठिन था , लेकिन स्थानीय गुर्जर-बकरवालों को यहाँ की भौगोलिक बनावट का विस्तृत ज्ञान था। गुज्जर-बकरवाल समुदाय, जो इस क्षेत्र का निवासी है, ने न केवल आतंकवाद का सामना किया बल्कि सुरक्षा बलों को सक्रिय रूप से सहयोग भी किया।
भारतीय सेना ने पहली बार स्थानीय समुदाय को प्रत्यक्ष भागीदारी का अवसर दिया – इन्हें हथियार दिए गए और प्रशिक्षण दिया गया। अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने न केवल आतंकियों की जानकारी दी, बल्कि शस्त्र हाथ में लेकर सीधे मुठभेड़ों में भाग लिया। 17अप्रैल 2003 को ऑपरेशन सर्प विनाश लॉन्च किया। आवाम और आर्मी ने मिलकर 83 आतंकी मारे और बाकी आतंकवादी पाकिस्तान भाग गए। यहां आवाम और आर्मी की जुगलबंदी सफल हुई। तब गांव-गांव में विलेज डिफेंस कमिटी भी बनाई गई।
इस अभूतपूर्व सहयोग का परिणाम अत्यंत प्रेरणादायक तो था, किंतु अत्यंत दुखद भी। इस संघर्ष में भारतीय सेना के बड़ी संख्या में सैनिक एवं 37 गुर्जर बकरवाल वीरगति को प्राप्त हुए। यह बलिदान किसी सैनिक से कम नहीं था, भारतीय सेना द्वारा वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिक तथा गुर्जर बकरवाल का संयुक्त " जवान और अवाम" वार मेमोरियल का निर्माण किया तथा हर वर्ष गार्ड ऑफ ऑनर से सम्मान दिया जाता है ।
लेकिन दुर्भाग्यवस जम्मू कश्मीर सरकार ने किसी प्रकार का शाहिद का दर्जा या सम्मान आज तक नहीं दिया एवं देश की नजर में भी समय के साथ यह योगदान देश की सामूहिक स्मृति से गायब रहा।
आतंकवाद के विरुद्ध खड़ी एक सशक्त दीवार:
गुर्जर-बकरवाल न केवल सेना के साथ मिलकर उग्रवादियों से लड़ते हैं, बल्कि उन्होंने आतंकियों को अपने समाज में स्थान न देने का प्रण भी लिया है। आतंकवादी अक्सर ऐसे क्षेत्रों को अपने ठिकाने बनाते हैं, जहाँ उन्हें स्थानीय समर्थन मिले, लेकिन गुर्जर-बकरवालों ने अपने क्षेत्रों को आतंकियों के लिए असुरक्षित बना दिया। कई बार उन्होंने सेना को गोपनीय जानकारी दी, आतंकियों के ठिकानों की पहचान की और मुठभेड़ों में सक्रिय योगदान दिया।बलिदान के बावजूद यह समुदाय आज भी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। सरकार की योजनाएँ इनके लिए धीरे-धीरे पहुँचती हैं। शिक्षा की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और राजनीतिक प्रतिनिधित्व की न्यूनता इनकी मुख्य समस्याएँ हैं। कई बार आतंकियों ने इनकी राष्ट्रवादी भूमिका के कारण इन पर हमले भी किए हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ गुर्जर-बकरवालों के घर जलाए गए, उन्हें धमकियाँ दी गईं, परंतु यह समुदाय झुका नहीं।
चुनौतियां और आगे की राह:
आतंकवाद विरोधी लड़ाई में गुज्जर-बकरवाल समुदाय के महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद, उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। आतंकवादियों द्वारा उन्हें लगातार धमकियां मिलती रहती हैं, और कई बार उन्हें हिंसा का शिकार भी होना पड़ता है। उनकी खानाबदोश जीवनशैली के कारण, उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे जैसी सुविधाओं तक सीमित पहुंच होती है।
सरकार और नागरिक समाज को इस समुदाय की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। उन्हें बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। उनके पारंपरिक अधिकारों और आजीविका की रक्षा की जानी चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आतंकवाद विरोधी प्रयासों में उनके अद्वितीय योगदान को स्वीकार किया जाना चाहिए और उन्हें सम्मानित किया जाना चाहिए। मौजूदा हालात में पूर्व की भांति भारतीय सुरक्षा बलों को गुर्जर बकरवाल को साथ लेते हुए इस आतंकवादी की लड़ाई में विजय हासिल करनी है।
निष्कर्ष:
गुर्जर-बकरवाल समुदाय की कहानी उस असल भारत की कहानी है, जो चुपचाप देश के लिए सब कुछ करता है, बिना किसी अपेक्षा के। उग्रवाद के दौर में अग्रिम चौकिया पर पोर्टर की भूमिका हो या ऑपरेशन सर्प विनाश हो या औरंगजेब की शहादत – यह समुदाय आज भी कश्मीर की आत्मा की रक्षा कर रहा है। हमें यह याद रखना चाहिए कि आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध केवल सेना का नहीं, बल्कि पूरे समाज का है – और गुर्जर-बकरवाल इस युद्ध में सबसे आगे खड़े हैं। यह आवश्यक है कि सरकार और समाज इस समुदाय के महत्व को समझें और आतंकवाद विरोधी प्रयासों में उनके सक्रिय सहयोग को प्रोत्साहित करना न केवल मानवीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि जम्मू-कश्मीर में स्थायी शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए भी आवश्यक है। गुज्जर-बकरवाल समुदाय जम्मू-कश्मीर देशभक्ति एवं आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।